औपनिवेसिक सत्ता सभ्यता कय भ्रमजाल अउर लोकगीत : बजरंग बिहारी ‘बजरू’
ई आलेख आकार मा भले थोर लागय मुला निगाह मा बहुत फैलाव औ गहरायी लिहे अहय। कयिउ बाति अस हयँ
Read moreई आलेख आकार मा भले थोर लागय मुला निगाह मा बहुत फैलाव औ गहरायी लिहे अहय। कयिउ बाति अस हयँ
Read moreएक दिन फिर जाता है और सारी स्थितियाँ बदल जाती हैं। विवाह के परोजन में, विदाई के पहले वाली रात
Read moreकंकर मोहें मार देइहैं ना.. कंकर लगन की कछु डर नाहीं, गगर मोरी फूट जइहैं ना.. कंकर मोहें मार
Read moreई गीत ‘बाज रही पैजनिया..’ होरी गीत हुवै। ई उलारा बोला जात है। यू फाग गीत के अंत मा गावा
Read moreई अवधी गीत ‘बालम मोर गदेलवा’ वहि नारी कै बाति रखत है जेहिकै बियाह गदेला से होइ गा है, यानी
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