पाहीमाफी [२१] : लागि कटान, कुल बहि बिलान -२
आशाराम जागरथ रचित ग्रामगाथा ‘पाहीमाफी’ के “पहिला भाग”, “दुसरका भाग” , तिसरका भाग , चौथा भाग , पंचवाँ भाग , ६-वाँ भाग , ७-वाँ भाग , ८-वाँ भाग , ९-वाँ भाग, १०-वाँ भाग , ११-वाँ भाग , १२-वाँ भाग, १३-वाँ भाग , १४-वाँ भाग , १५-वाँ भाग, १६-वाँ भाग , १७-वाँ भाग , १८-वाँ भाग , १९-वाँ भाग , २०-वाँ भाग के सिलसिले मा हाजिर हय आज ई २१-वाँ भाग :
गाँव मा बाढ़ कयिसे आयी, ई ‘लागि कटान कुल बहि बिलान’ के पहिले हिस्सा मा देखावा गा अहय। बाढ़ मा अउर का-का भा अउ रचनाकार कयिसे गाँव से बहिरे निकरै पै मजबूर भा, ई यहि दुसरे भाग मा देखा जाय सकत हय। यहितिना ई बहुत कम सबदन मा बाढ़ कय बड़ा मार्मिक बयान बनि परा हय। पानी कय बाढ़ तकलीफौ कय बाढ़ बनिगै। मुला जब यहि बाढ़ मा छोट गेदहरै डूब-मरयँ तौ वहि कोहराम मा दूसर दुख भुलाय जात रहे :
दुख-दर्द दूरि भय छोट-मोट
कोहराम मचा पूरे घर मा…
बाढ़ के सामने मनई टिक नाहीं पावा। ऊ गाँव छोड़य क मजबूर होइगा। गाँव से कहूँ बहिरे बसै-जियै कै ठीहा मिलब रचनाकार के ताई बिन माँगे मिली मुराद हय, तब्बो गाँव छोड़य कय कसक बहुत कसकी बाय : लागै कि देश-निकाला हन / सोची,रोई मन ही मन मा! : संपादक
_________________________________________________________________________
- लागि कटान, कुल बहि बिलान -२
यक तौ कटान दुसरे बहिया
ऊपर से पानी झमा झम्म
घर गाँव बिलाय गवा जड़ से
आफ़त नाचै छम छमा छम्म
‘पाहीमाफी’ छितराय गवा
पूरब बगिया मा आय गवा
जेकरे जमीन यक्कौ धुर ना
ऊ गाँव छोड़ि बिलगाय गवा
पांड़े बोले मड़ई धइ ल्या
नीबी के बगल जमीनी मा
यकतनहा नीम कै पेड़ गवाह
बचा बा पाहीमाफी मा
सरजू मा जब घर-गाँव कटा
कटि कै बहि गै नरिया-खपड़ा
बखरी-कुरिया कै भेद मिटा
सबके टाटी सबके छपरा
देखै मा सब यक्कै घाटे
पर जाति कै बीज रहै बिखरा
जब बाढ़ आय तब काव करैं
गंधाउर पानी रहै भरा
पानी रस्ता, रस्ता म पानी
बाहर पानी, पानी घर मा
यकतनहा नीम कै पेड़ गवाह
बचा बा पाहीमाफी मा
ईंटा – खपड़ा – नरिया – लकड़ी
बड़वरकन के बड़की बखरी
बरियान रहे जे गुमान करैं
लइकै भागैं बटुला-बटुली
जे चलत रहीं अइंठी-अइंठी
लरिका दुपकाय रहीं बइठी
छोटवरकै खीस निपोर दियें
जब कहैं कि ना आवा अइसी
उकडूँ बइठी नइकी दुलहिन
किस्मत कां कोसै घूँघुट मा
यकतनहा नीम कै पेड़ गवाह
बचा बा ‘पाहीमाफी’ मा
नित-क्रिया कै कठिन समिस्या,
सब पानी मा सुबहोशाम करैं
सरियारिग लरिके चला जायँ
पेड़े ऊपर मैदान करैं
छपरा कै लकड़ी खींच-खाँच
माई ईंधन चीरैं- फारैं
पटरा बिछाय खटिया उप्पर
ईंटा धइ कै चूल्हा बारैं
पानी लावै कां कहाँ जाय
जब कुआँ डुबा हो बाढ़ी मा
यकतनहा नीम कै पेड़ गवाह
बचा बा पाहीमाफी मा
दइ कै थपकी सन्हें सोवाय
कहूं भीतर- बाहर गयीं चली
दुधमुहीं बिटियवा दूबे कै
खटिया के नीचे डूब मरी
अइसै यक दिन हमारौ बिटिया
पानी मा झम्म से लुढ़ुक गयी
सुनतै अवाज़ मलकिन दौरीं
देखिन कि खटिया खाली पड़ी
जुरतै कइसौ बस पकरि लिहिन
वै टोय-टाय कै पानी मा
यकतनहा नीम कै पेड़ गवाह
बचा बा पाहीमाफी मा
बैठा खटिया पै पड़ा रहै
नीचे से पानी भरा रहै
बुनियाय लगै, लइकै कथरी
कहूं देख सुभीता खड़ा रहै
नीचे से ईंटा लगत जाय
खटिया कै पावा उठत जाय
कथरी-गुदरी कुलि भीजि जाय
कहुं यक्कौ ईंटा खिसक जाय
यक दिन भहराय पड़े ‘दादा’
सोवत कै आधी राती मा
यकतनहा नीम कै पेड़ गवाह
बचा बा पाहीमाफी मा
पानी घटि गय जब बहिया कै
चिपचिपा नमी बाहर – भित्तर
सूखै जइसै तनिकौ कीचड़
पानी बरसै वकरे उप्पर
सर्दी-खाँसी तौ आम बात
जूड़ी – बोखार कै ताप बढ़ा
घर-घर मा लोग बेमार मिलैं
खटिया लइकै सब रहैं पड़ा
कुछ घूमैं झोरा-छाप डाक्टर
लिहें दवाई झोरा मा
यकतनहा नीम कै पेड़ गवाह
बचा बा पाहीमाफी मा
अब काव कही केतना गाई
खोपरी फोरिबा हमारी ताईं ?
बाढ़ी से बरपा कहर रहै
टी० बी० जोरान, खांसै माई
बिखरा-बिखरा साजो-समान
मुँहफटा चिढ़ावै आनबान
माई कै खाँसी जोर किहिस
खंसतै-खाँसत निकरा परान
दुःख-दर्द दूरि भय छोट-मोट
कोहराम मचा पूरे घर मा
यकतनहा नीम कै पेड़ गवाह
बचा बा पाहीमाफी मा
जिनके धन-दौलत ना खेत
वै का जानैं देश-विदेश
गाँव-गाँव मा करैं मजूरी
वनकै तौ गाँवै ‘परदेश’
धरती माई बनिन विमाता
फेर लिहिन मुँह ‘भारत माता’
नदी म कटि गै ठौर-ठिकान
टूटा जनम-भूमि से नाता
भागैं जेस पलिहर कै बानर
माझा मा केऊ डाड़े मा
यकतनहा नीम कै पेड़ गवाह
बचा बा पाहीमाफी मा
घाटे पै यक दिन खड़े-खड़े
‘भैरव पंडित जी’ बोल पड़े
कपड़ा तू धोवत हया आज
कब्बहुँ ई सब कुछ याद पड़े
यक काम करा तू चला जाव
यहि गाँव म काव धरा बाटै
मड़ई धइ लिया अमोढ़ा मा
थोरै जमीन हमरे बाटै
बिलगाय गये तोहरे गंहकी
नाहीं कुछ खेती-बारी मा
यकतनहा नीम कै पेड़ गवाह
बचा बा पाहीमाफी मा
हमरे मन मा जो बात रहा
ऊ ‘भैरव पंडित’ छीन लिहिन
बिन मांगे मिली मुराद हमें
हमकां वै आशीर्वाद दिहिन
छपरा उजारि कै बान्ह लिहन
यक ठू लढ़िया पै लाद लिहन
लादे गुबार खट्टा- मीठा
हम गाँव छोड़ि कै चला गयन
लागै कि देश-निकाला हन
सोची,रोई मन ही मन मा
यकतनहा नीम कै पेड़ गवाह
बचा बा पाहीमाफी मा
तू कहत हया कि बहुत कहेन
लेकिन बहुतै छूटा बाटै
जेतना सपरा सब कहे हई
यतना ही कहा बहुत बाटै
का खाली-खाली नीक कही
औ सबके मन कै बात कही
दुःख-दर्द सभी केव् मनई कै
यक ठू किताब मा छाप कही
ई पढ़ा किताब, विचार करा
सोचा अपने भीतर मन मा
यकतनहा नीम कै पेड़ गवाह
बचा बा पाहीमाफी मा.
[जारी….]
कटान और बाहिया का मार्मिक चित्रण। जागरथ जी अवधी के एक बड़े कवि सिद्ध होंगे।