पाहीमाफी [१९] : मजूरी नाहीं, हींसा – २
आशाराम जागरथ रचित ग्रामगाथा ‘पाहीमाफी’ के “पहिला भाग”, “दुसरका भाग” , तिसरका भाग , चौथा भाग , पंचवाँ भाग , ६-वाँ भाग , ७-वाँ भाग , ८-वाँ भाग , ९-वाँ भाग, १०-वाँ भाग , ११-वाँ भाग , १२-वाँ भाग, १३-वाँ भाग , १४-वाँ भाग , १५-वाँ भाग, १६-वाँ भाग , १७-वाँ भाग , १८-वाँ भाग के सिलसिले मा हाजिर हय आज ई १९-वाँ भाग :
कुछ बात ‘मजूरी नाहीं, हींसा-१’ के संपादकीय मा कहि चुका हन्। दुहराउब ना। चारि आना के बदले बारह आना मजूरी क पावै के ताईं जौन संघर्ष सुरू भा ऊ हियाँ अंतिम छंद तक ठकुराने से आपन हिस्सा मांगै के रूप मा खतम हुअत हय। ई हिस्सा कै मांगि सपने मा देखी गय हय। वास्तविकता मा नाहीं घटी। लेकिन चाहत यही कय हय। ठकुराने कय हारौ सपनेन मा हुअत हय। आगे जौन-जौन सामाजिक उलटफेर भा, वहिमन यहि सपने कय, थोरै बहुत सही, पूर हुअब देखा जाय सकत हय। लड़ाई आसान तौ अहय नाहीं, थोरौ पुराब थोर नाहीं अहय। एक बात बढ़िया उठायी गय हय — आंदोलन मा दगा दियय वाले लोगन कय जिक्र। गँवई मजूर आंदोलन के नेता कय भाय बिभीसन कय भूमिका खेलि गा। जबर ताकतै अस बिभीसनन के जरिये अपन काम ख़ूब सिद्ध करति हयँ। यहि जरूरी गँवईं सच का समझय के ताई ई भाग पढ़ा जाय। अऊर जादा जुड़य के ताईं मजूरी नाहीं, हींसा-१’ देखा जाय सकत हय। : संपादक
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- मजूरी नाहीं, हींसा – २
सूद-अछूत औ’ मुसलमान
छुटजतियन मा छोटे किसान
जमिदारी के चाकी बीचे
गोहूँ साथे घुन हूँ पिसान
मूड़े साफा लाठी कान्हें
गोलियाय उठे अपुवैं पाठे
कुछ भाग बहानेबाज गये
कुछ दगाबाज, दुश्मन साथे
कुछ यहर रहैं कुछ वहर रहैं
कुछ यहरी मा ना वहरी मा
यकतनहा नीम कै पेड़ गवाह
बचा बा ‘पाहीमाफी’ मा
अकिल कै आन्हर गाँठ कै पूर
सग्गै भाय बिभीसन गूढ़
चकमा चकाचौंध चम-चम-चम
मियाँ कै जूती मियाँ क् मूड़
खुब ढूढ़ लियौ पत्ता-पत्ता
गोलियान मजूरेन कै छत्ता
धुइंहर कइकै घर फूँक दियौ
जरि जायँ मरैं सब अलबत्ता
ना, खबरदार ! अइसन नाहीं
फटकारिस बुढ़वा बीचे मा
यकतनहा नीम कै पेड़ गवाह
बचा बा ‘पाहीमाफी’ मा
छाँटत हौ सभै कबोधन मिलि
सौ कै सीधी हम बात करी
सच सोरह आना का बोली
मुल पौने सोरह खरी-खरी
अगुवान बना बड़का नेता
मिलि गेंछिकै पकरि लियौ नोटा
यक्कै कां धुनुक दियौ गतिकै
बाकी तौ बिन पेंदी लोटा
ठकुरई मार मारौ अइसन
सुनि परै आदि-औलादी कां
यकतनहा नीम कै पेड़ गवाह
बचा बा ‘पाहीमाफी’ मा
काहे अकड़ा अइंठा-गोइंठा
घिर्राय खटोला पै बइठा
पच्छू से सूरज उगा आजु
गुलरी कै फूल भयौ ‘नेता’
बइठे तो करर कर्र पाटी
फुसफुस बतुवात रहे साथी
चारिउ वोरी से घेरि लिहिस
ठकुरेन कै झुंड लिहे लाठी
‘नेता’ भागैं तौ कहाँ जायँ
घुसि गये लुकाय कोठरी मा
यकतनहा नीम कै पेड़ गवाह
बचा बा ‘पाहीमाफी’ मा
भै गिध-गोहार हल्ला-गुल्ला
बल्लम फरसा छूरी-छूरा
छपरा पै लाठी घपर-घपर
हूलयं पल्ला हूरै-हूरा
हीलै-डोलै किल्ली खटखट
जब-तब बाहर झाँकै लकझक
चिल्लाय टेंगारी ‘नेता’ कै
घुसि आओ ताजा खून पियब
सब कहैं कि फूँक दियौ छपरा
मुल गोड़ हलै ना भितरी मा
यकतनहा नीम कै पेड़ गवाह
बचा बा ‘पाहीमाफी’ मा
कउनौ खानी आये हत्थे
बहु घंटन बाद मसक्कत के
घिर्राय कै भूईं मारैं सब
लाठिन-लाठी लातै-लाते
कुनबा परोस छित्तर-बित्तर
दूरै से बस हुम्मी-हुम्मा
चिल्लायं डेरान गेदहरे कुलि
फेंकुरै मेहरी फेंकै गुम्मा
खाली यक मुसलमान साथी
कूदा लठ लइकै बीचे मा
यकतनहा नीम कै पेड़ गवाह
बचा बा ‘पाहीमाफी’ मा
दूनौं कां मारि वलार दिहिन
अधमरा जानिकै छोड़ दिहिन
नेता कै भाय भिभीषण जब
दुई गोड़ पकरि कै छानि लिहिस
हाय रे ददई ! हाय रे मइया !
अइसन नाहीं जानेन दइया
मुंह काव देखाइब दुनिया कां
मरि गये कहूँ बड़के भइया
बुद्धी भरभस्ट रहा माथे
अपजस कलंक जिनगानी मा
यकतनहा नीम कै पेड़ गवाह
बचा बा ‘पाहीमाफी’ मा
चिरई-चुंगा चौवा-चांगर
चौकन्ना कान दिवार खड़ी
कूकुर बिलार कूँ-कूँ माऊं
पुरबी बयार चहुँवोर बही
सग भाय भिभीसन भेदी कै
जब खुली आँख चिल्लाय बहुत
चिरई चुग गै सगरौ खेतवा
ऊ मलै हाथ पछिताय बहुत
पूरे जवार अललाय खबर
कुछ-कुछ हरकत भै थान्हें मा
यकतनहा नीम कै पेड़ गवाह
बचा बा ‘पाहीमाफी’ मा
जोगियै जोगी मुल मठ उजाड़
सोहै नाहीं यक्कौ सिंगार
मानौ जबरी घरहिम् लूटी
मुड़ियाये मूड़ी चलै रांड़
सन्नाटा सायँ-सायँ टोलिया
भौकाल्यू बोलैं ना बोलिया
आखिर दम साथ देवइयौ अब
बगली से नाप लियैं कोलिया
बरसात महिन्ना झमाझम
आगी बुताय ना पानी मा
यकतनहा नीम कै पेड़ गवाह
बचा बा ‘पाहीमाफी’ मा
कहँरे नेता मिनके कांखे
हमकां ना जाय दिह्यौ थान्हें
झाकै न जात-बिरादर क्यौ
बड़का सग्गै सब बेगाने
जब नात-बाँत सबका टोयन
तब पलिहर मा मूजा बोयन
अइसनै नाहिं कहकुत बाटै
जिउ-जान जरे आंखी देखेन
लधिकै खटिया कउनौ खानी
नेता उखुड़ी के खेते मा
यकतनहा नीम कै पेड़ गवाह
बचा बा ‘पाहीमाफी’ मा
जुग्गातन घर नाहीं आवा
लापता ‘बहदुरा’ सुनि पावा
थान्हें कै ‘मोस्ट वांटेड’ ऊ
अन्हियारी राती मा आवा
माई रे ! हमका जाई दियौ
मेहरारू नइहर पठय दियौ
समझौ यक ठू बेटवा नाहीं
माथे पै कप्फन बान्हि दियौ
दुस्मने कां कोसै सात पुस्त
सुमिरै महतारी देवतन कां
यकतनहा नीम कै पेड़ गवाह
बचा बा ‘पाहीमाफी’ मा
अन्हराय जायँ कोढ़ियाय जायँ
हइजा पकरै निकरै खटिया
पानी बिन घटका लागि रहै
कीयाँ परि जायँ मरत बेरिया
लकवा मारै मुहँ टेढ़ हुवै
माँगे जल्दी ना मउत मिलै
भगवान भगवती माई हो !
कइ द्या उच्छिन्न बंस कुल कै
हम टूटत बहुत सरापत हन्
जिउ जरे डाह भारी मन मा
यकतनहा नीम कै पेड़ गवाह
बचा बा ‘पाहीमाफी’ मा
अइंचा-ताना कोढ़ी–काना
ठट्ठा ठहाका ठकुरहना
अब दियौ बढ़ाय मजूरी सब
चार आना से बारह आना
बाचैं, परधान येक पाती
बागी तुहरे सबकी जाती
परनाम करै जल्दी अइबै
अबहीं हम आज जात बाटी
बौरान ‘बहदुरा’ बमकत बा
बनरे यस घुड़की पाती मा
यकतनहा नीम कै पेड़ गवाह
बचा बा ‘पाहीमाफी’ मा
बहिनी ! कलिहां सपने म् देखेन
मरदेन कै रहै लहास परी
कौववै काँव कौं काँव करैं
गिद्धै ही गिद्ध उड़ैं बखरी
सूदै मिलि ढोल बजावअ थैं
चढ़िकै लहास पै नाचअ थैं
कोठरी करियाय लरिकवन कां
मेहरारुन कां पलझावअ थैं
बोलैं, ‘ठकुराइन मान जाव
हींसा अब खेती-बारी मा
यकतनहा नीम कै पेड़ गवाह
बचा बा ‘पाहीमाफी’ मा.
[जारी….]