कविता : आजादी की बरसी पर (शैलेन्द्र कुमार शुक्ल)
आजादी की बरसी पर
करिया अच्छर खुनियाय गये
कागद आंसुन ते गये भीजि
जे कलमइ फांसी दीहिन रहे
बड़ नेता उन पर गए रीझि।
जे देसवा खातिर भिंजरि गये
उनकी उम्मीदय सुलगि रहीं
सपने सब जिनके बिथरि गये
औलादी उनकी रिरिकि रहीं
जे खून बहाइन, जिव दीन्हिन
छाती पर गोली खाय खाय
जिनके लरिका फांसी चढ़िगे
उनकी अम्मा की हाय हाय
आजादी उनकी और रहे
उनके सपने कुछ रहें और
जिनकी कुर्बानी भई रहे
उनकी कीमत कुछ रहे और
तुम बीच म फाटेउ बादर अस
बिजुरी अस गिरेउ गरीबन पर
खेती कीन्हेउ तुम लासिन की
लट्टू हुइ गएउ अमीरन पर
टाटा बिरला मित्तल होरे
सब देसु टहलि के झारि लिहिनि
सरकारइ तुमरी रहैं खूब
काजरु उनकी बदि पारि दिहिनि
फिरि भइं देवारी दिया बरे
पूंजीपति बर्फी धमकी रहे
जे असिली मा हकदार रहें
उनके घर घुप्प अंधेरु रहे
हम उबरि न पाये रहन तनिकु
उनते बड़खर जल्लाद मिले
उइ कहिन कि दुख सबु हरि लेबा
सब राम भरत अस खूब मिले
चौदह मा भवा इलेक्सन फिरि
वै टीबी पर वाटय मांगिन
कुछ धरम धुरंधर रैलिन मा
सब वादा हमते कई डारिन
बोले अच्छे दिन आय रहे
पुरिखा लहि सब पतियाय गये
जो नये खून के ज्वान रहें
सब बजरंगी बनि छाय गये
को रामकाज मा बिपति बने
तलवार लिए हिन्दू सेना
भगवा का बांधि मुरैठा वै
ककुवा होरे धौंकैं ब्याना
कुछ जन समुझावैं समुझइं ना
ययि हत्यारे हैं मानइं ना
गांधी के गोली मारिन यइ
वै रहे बतावत जानइं ना
यइ अग्रेजन का साथु दिहिन
जब पुरिखा तुमरे लड़त रहें
यइ करिन गुलामी राजन की
जब बप्पा लाठी खाति रहें
यइ जन गण मन ना गाइ सके
जब आजादी के ढोल बजे
यइ कबौ तिरंगा ना थामिन
जब आजादी के साज सजे
ककुवा गुजराती दंगन का
तुम यतनी जल्दी भूलि गयेउ
मंदिर मस्जिद की राजनीति
तुम सांपु आइस सब सूंघि गयेउ
वहु नसा धरम का चढ़ा रहे
यहु किहिस अफीमी अपन काजु
जानै समुझै पर जोरु नहीं
फिरि छाय गवा सब रामराजु
मोदी जी फिर परधान भए
औ अमित साह जोड़ी थामिन
कुछ राजनाथ नेता होरे
सब नई कैबिनिट गढ़ि डारिन
सिच्छा मंत्रालय मनु स्मृति
ईरानी जी का मिला रहे
तौ बात हिंये से सुरू भई
जब शोध वजीफा कटा रहे
दिल्ली मा भवा आंदोलन
सब लरिका लरिकी जुटे रहें
तब रामराज की सरकारी
लाठी पीठिन पर परी रहें
यहु रामराज का नक्सा सबु
हमरी आंखिन का डाहि गवा
जब दाना माझी लासि लिए
कांधे पर पत्नी आय गवा
एक रात रहे आधी आधी
जब नोट बंद का हुकुम भवा
साइकरा पार कइ मरे खूब
लाखन जन का रूजिगार गवा
साहब जी कबौ बताइन ना
क्यतना काला धन निकरा है
जनधन वाले खाता मइहाँ
पंद्रह लाख कब पहुंचा है ?
यतना झेले के बादिउ मा
जनता पर चढ़ी अफीम रही
यूपी मा फिर अधिकार भवा
‘तपसी धनवंत दरिद्र ग्रही’
क्यतने दिन अबही बीते हैं
गोरखधंधा की जग्य भयी
गोरखपुर जनपद मा द्याखौ
केतनी हत्यारिन नदी बही
उन दुधमुंहटन की लासिन का
जो कांधे धरि धरि रोउती हैं
क्यतने हइं फाट हिये उनके
महतारी जउन तड़पती हैं
यह आजादी है कौनि मिली
हम माथु ठोकि के सोचित है
सन सैंतालिस से सत्रह लहि
कफ्फ़न के कपड़ा नोचित है
दै रहे बधाई मुखिया जी
है आजु अट्टिमी कृस्न जलम
हम तुमरे मुंह पार थूकित है
सब नसा हिरन है धरम करम ।
__शैलेन्द्र कुमार शुक्ल
[15/08/2017]
शानदार
जे असिली मा हकदार रहें
उनके घर घुप्प अंधेरु रहे
शानदार
बहुतै नीक भइया, बहुतै नीक ।
तुम जो कुछ लिक्खे हौ ना, हमहू वहै सोच सोच कय झूरित है।गुस्सा अंदरै अंदर घुघुआवत है, मुदा हम तो कबित्त गढ़ नहीं पाइत है । यहिके खातिर तुमका बहुत बहुत धन्यवाद । खुस रहा ।