बजरंग बिहारी ‘बजरू’ केर गजल (१) : गजल मामूली है लेकिन लिहेबा सच्चाई.
पहिल मार्च सन १९७२ क अवध के गोन्डा जिला मा बजरंग बिहारी ‘बजरू’ क्यार जनम भा रहा। देहाती जिंदगी अउर भासा से यनकै सुरुआती जीवन अस सना कि ऊ पूरी उमिर भर कय अटूट हिस्सा होइगा। जइसे सबकै पढ़ाई-लिखाई कय भासा खड़ी बोली-हिन्दी होइ जात हय, अइसनै यनहूँ के साथे भा। मुला जउन बहुतन के साथे हुअत हय ऊ यनके साथे नाय भा! काव? यहय कि बादि मा खड़ी बोली-हिन्दी कय बिख्यात लेखक हुवय के बादौ अपनी मातरीभासा से जुड़ाव नाहीं टूट। मुदा ई जुड़ाव जाहिर कयिसे हुवय? यहिकी ताईं ‘बजरू’, यहि अवधी नाव से यइ अवधी गजलन का लिखै क सुरू किहिन। अउर आजु ई देखि के जिउ बार-बार हरसित ्हुअत हय कि यहि साइत अवधी कबिताई मा जौन आधुनिक चेतना कय कमी इन अवधी गजलन से पुरात हय, वहिके खातिर पूरा अवधी साहित्त यनपै नाज करत हय औ करत रहे। अब अवधी गजलन से रूबरू हुवा जाय। : संपादक
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[१]
हेरित है इतिहास जौन दिन झूठ बदलि कै फुर होइगा
झूर आँख अंसुवात जौन दिन झूठ बदलि कै फुर होइगा।
हंडा चढ़ा सिकार मिले बिनु राजाजी बेफिकिर रहे
बोटी जब पहुंची थरिया मा झूठ बदलि कै फुर होइगा।
बिन दहेज सादी कै चर्चा पंडित जी आदर्स बने
कोठी गाड़ी परुआ1 पाइन झूठ बदलि कै फुर होइगा।
“खाली हाथ चले जाना है” साहूजी उनसे बोले
बस्ती खाली करुआइन जब झूठ बदलि कै फुर होइगा।
‘बजरू’ का देखिन महंथ जी जोरदार परबचन भवा
संका सब कपूर बनि उड़िगै झूठ बदलि कै फुर होइगा।
[२]
चढ़ेन मुंडेर मुल2 नटवर3 न मिला काव करी
भयी अबेर मुल नटवर न मिला काव करी।
रुपैया तीस धरी जेब, रिचार्ज या रासन
पहिलकै ठीक मुल नटवर न मिला काव करी।
जरूरी जौन है हमरे लिए हमसे न कहौ
होत है देर मुल नटवर न मिला काव करी।
माल बेखोट है लेटेस्ट सेट ई एंड्राइड
नयी नवेल मुल नटवर न मिला काव करी।
रहा वादा कि चटनी चाटि कै हम खबर करब
बिसरिगा स्वाद मुल नटवर न मिला काव करी।
[३]
गजल मामूली है लेकिन लिहेबा सच्चाई
बिथा4 किसान कै खोली कि लाई गहराई।
इस्क से उपजै इसारा चढ़ै मानी कै परत
बिना जाने कसस बोली दरद से मुस्काई।
तसव्वुर दुनिया रचै औ’ तसव्वुफ अर्थ भरै
न यहके तीर हम डोली न यहका लुकुवाई5।
धरम अध्यात्म से न काम बने जानित है
ककहरा राजनीति कै, पढ़ी औ’ समझाई।
समय बदले समाज बोध का बदल डारे
बिलाये वक्ती गजल ई कहैम न सरमाई।
चुए ओरौनी जौन बरसे सब देखाए परे
‘बजरू’ कै सच न छुपे दबै कहाँ असनाई।
[४]
चले लखनऊ पहुंचे दिल्ली,
चतुर चौगड़ा6 बनिगा गिल्ली7।
हाटडाग सरदी भय खायिन,
झांझर8 भये सुरू मा सिल्ली9।
समझि बूझि कै करो दोस्ती,
नेक सलाह उड़ावै खिल्ली।
बब्बर सेर कार मा बैठा ,
संकट देखि दुबकि भा बिल्ली।
‘बजरू’ बचि कै रह्यो सहर मा,
दरकि जाय न पातर झिल्ली।
- परुआ= यूँ ही, मुफ्त में
- मुल= लेकिन
- नटवर= नेटवर्क
- बिथा= व्यथा, पीड़ा
- लुकुआई= छिपाना
- चौगड़ा= खरगोश
- गिल्ली= गिलहरी
- झांझर= जीर्ण-शीर्ण, कमज़ोर
- सिल्ली= शिला, चट्टान
सम्पर्क:
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गाँव- बेगमपुर,
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