एक साल अउर बीता__उन्मत्त / @१४ ढेरक्के सुभकामना!
आप सबका २०१४ मुबारक! दुइ हजार तेरह जाय-जाय क अहै, औ दुइ हजार चौदह आवै-आवै क! अगिला भिनसार दुइ हजार चौदह कै पहिल भिनसार होये। सबके ताईं ई नौका साल बहुत छाजै, सबकै अरमान पुरायँ, हर मेर कै तरक्की सबका मिलै, जेकर गाड़ी जहाँ रुकी अहै औ जहमति मा फँसी अहै ऊ छुक-छुक कैके चलि परै, सबके बीचे सुमति ब्यापै औ कुमति बिनसै, अउर हाँ, सब अवधियन के गले से अवधी कै मिठास दिग-दिगन्त तक फैलै!
कुछ ब्यस्तता के चलते दुइ हजार तेरह मा यहि पोर्ट्ल पर जेतना काम हुवै क रहा, नाय होइ पावा। हम जीबिका के चक्कर मा यहिरी-वहिरी आवै-जाय मा रहि गयेन मुदा चौदह मा हम दिल्लिन मा रहब, अस्थिर होइके रहब तौ जादा काम कै सकब, चौदह मा ई पोर्टल अवधी ताईं पढ़ै बरे बढ़िया-बढ़िया चीजन क दै सके, हमैं अस भरोसा अहै!
यक साल अउर बीतिगा, जैसे कयिउ साल बीते, बीते साल कै हम लेख-जोखा देखी औ नये साल मा नीमन करै कै संकलप ली, यही नौके साल के ताईं सबसे जबर पैगाम होइ सकत है! आज यहि मौके पै अपने पसंदीदा कवि आद्या प्रसाद ‘उन्मत्त’ कै कविता ‘एक साल अउर बीता’ आपके साथ बांटा चाहित है, यहि दिलचस्प कबिता कै मजा लीन जाय! : संपादक
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”एक साल अउर बीता”__उन्मत्त
कुछ बीतिगा लड़कपन की मौज म, मस्ती मा
कुछ बीतिगा डगर मा सुनसान म, बस्ती मा
कुछ बीतिगा खोवइ मा कुछ बीतिगा पावइ मा
कुछ बीतिगा रोवइ मा कुछ बीतिगा गावइ मा।
का चूक भइ न कबहूँ सोचइ क भा सुभीता,
एक साल अउर बीता।
कबहूँ जनान दुनिया अबहीं उछिन्न होई
कबहूँ जनान सगरौ अब ताक धिन्न होई
कबहूँ बजी पिपिहिरी कबहूँ बजा नगाड़ा
गइ जरि कभौं उखाड़ी झंडा ग कभौं गाड़ा।
कबहूँ त बिना बातइ के लागिगा पलीता।
एक साल अउर बीता।
परसौं अहै दसहरा नरसौं अहै देवारी
सब आइ के चला गे तिउहार बारी-बारी
पनरा अगस्त आवा फिर आइ दुइ अक्तूबर
हफ्ता भरे कै झंझट फैलाइ गा नवंबर।
नापै के बरे जिनगी हर साल नवा फीता।
एक साल अउर बीता।
महजिद से ताल ठोंकेन मन्दिर से ताल ठोंकेन
केतनौ गयेन छोड़ावा फिर फिर से ताल ठोंकेन
बनि के धरमधुरी सब केतना रकत बहाएन
खूनइ क किहेन उल्टी खूनइ म खुब नहाएन।
दुइनौ छलाँग मारेन केउ बाघ केहू चीता।
एक साल अउर बीता।
दर्रान तलइयन के दिन फिर से किहे फेरा
घाटन प खिली सुतुही पानी म कुईं-बेरा
फिर हरसिंगार फूला फिर डार-डार गमकी
पछियाँव तनी ढुरका सगरी सेंवार गमकी।
गदराय गईं उखिया पियराइ गा पपीता।
एक साल अउर बीता।
हमरेउ अँजोर लौटइ तोहरेउ अँजोर लौटइ
इंसान की जिनगी मा फिर फिर से भोर लौटइ
धरती क भाग जागइ दुख औ दरिद्द भागइ
संसार के अँगना मा फिर जोत परब लागइ।
रावन क कै उछिन्नी लौटइ सुमति क सीता।
एक साल अउर बीता।
कवि: आद्या प्रसाद ‘उन्मत्त’
सुन्दर कविता!
बांटने के लिए आभार!
नए वर्ष में सब मन मुताबिक हो!
शुभकामनाएं!
उन्मत्त जी के बहुत नीक औ खूबसूरत कविता के लिए धन्यवाद भईया!
आपहु के नए साल २०१४ की बहुत सुभकामनाएँ ..