कवि श्री युक्तिभद्र दीक्षित ‘पुतान’ की क्रांतिकारी प्रगतिशील चेतना को नमन!

बहुत अफसोस कै बाति है कि अवधी कै कवि युक्तिभद्र दीक्षित पुतान अब हमरे बीच नहीं हैं। औरौ अफसोस कै बाति है कि उनके बारे मा मीडिया वगैरह से कौनौ जानकारिव नाही दीन गै। लेकिन उत्साही युवा शैलेन्द्र शुक्ल तमाम खामियन का खतम करत औ हमार जानकारी बढावत ई ‘सरधांजलि’ आलेख भेजिन हैं। हम आभारी हन। : संपादक
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कवि श्री युक्तिभद्र दीक्षित ‘पुतान’ की क्रांतिकारी प्रगतिशील चेतना को नमन!
__शैलेन्द्र कुमार शुक्ल
युक्तिभद्र दीक्षित “पुतान” आधुनिक अवधी काव्य परम्परा के विशिष्ट हस्ताक्षर हैँ,जिनका पिछले दिनोँ 24 जुलाई को निधन हो गया । ये अवधी की नयी लीक के प्रवर्तक महान क्राँतिकारी कवि बलभद्र प्रसाद दीक्षित पढ़ीस के पुत्र थे । क्रांति और कविता इन्हेँ विरासत मेँ मिली थी । ये सच्चे अर्थोँ मेँ पढ़ीस की परम्परा के उत्तराधिकारी थे ।इन्होँने अपने जीवन मेँ बड़े संघर्ष झेले ,लेकिन समझौते का रास्ता नहीँ अपनाया ,आखिर पुत्र ही ऐसे स्वाभिमानी व्यक्तित्व के थे।पुतान जी आकाशवाणी इलाहाबाद मेँ नौकरी करते थे । वहाँ ये किसानोँ के लिये कार्यक्रम मेँ मतई भइया / मतई काका के नाम से प्रसिद्ध हुये । पुतान जी ने पचीसोँ रेडियो नाटक और नौटंकी अवधी और भोजपुरी मेँ लिखीँ तथा उनमें भूमिका निभाई । वह लोक गीतोँ के बड़े अच्छे पारखी थे .वह बड़े अच्छे लोकगीत रचते और बहुत ही अच्छी लय मेँ गाते थे । मैँ पिछले साल जब इलाहाबाद उनसे जा कर मिला ,तब मैँ पढ़ीस जी के बारे मेँ उनसे जानने-समझनेँ को उत्सुक था ,लेकिन पुतान जी से मिलकर मुझे एक नये अध्याय के बारे मेँ पता चला । पुतान जी ने अपने कुछ गीत और कविताएँ बड़ी संजीदगी से सुनाई। वह आधुनिक अवधी साहित्य से हिँदी वालोँ की उदासीनता से दुखी थे , और अवधी के आधुनिक विद्वानोँ की संकुचित मानसिकता से उन्हेँ बड़ा कष्ट था । जो पूर्णतः जायज था।
उन्होँने अवधी और भोजपुरी दोनोँ मेँ श्रेष्ठतम कविताएँ रचीँ हैँ। उनकी कई काव्य पुस्तकोँ का प्रकाशन बहुत पहले परिमल प्रकाशन से हुआ था जिनका अब कहीँ अता पता नहीँ मिलता । उन्होँने स्वतंत्रता आंदोलन के समय कई महत्वपूर्ण रचनाएँ दी। उनकी कुछ कविताऔँ के उदाहरण डा.मधुप ने अपनी पुस्तक “अवधी साहित्य का इतिहास” मेँ दिया है।
वह प्रगतिवादी चेतना के कवि थे । वह प्राचीन रूढ़िवादी और पूंजीवादी समाज को मिटाकर एक अभिनव समाज की स्थापना करना चहते थे जिसमेँ न कोई शोषक हो न कोई शोषित । शासन व्यवस्था से असंतुष्ट कवि किसानों को क्रांति के लिये ललकारते हुये कहता है-
“रे छोड़ भला अब तो खटिया
दे फूँकि फूस की यह टटिया ।”
देश की खोखली आजादी पर प्रहार करती पुतान जी ये पंक्तियाँ देखिये-
“सब कहेँ मुलुक आजाद भवा
भारत का मिलिगै आजादी ।
मुलु तोरी मुरझुल्ली ठठरी पर
लदि गै और गरू लादी
आजाद भये हैँ संखपती
उइ तोरि करेजी काढ़ि सकैं।
आजाद भये सोँठी साहू
त्वांदन के मेटुका बाढ़ि सकैँ।”
उनके एक और क्रांतिकारी गीत की याद ताजा कीजिये –
“चेतु रे माली फुलबगिया के
बड़ी जुगुति ते साफु कीन तुयि
झंखरझार कटीले ।
दै दै रकतु प्रान रोपे रे
सुँदर बिरिछ छबीले ।
रहि ना जायं गुलाब के धोखे
काँटा झरबेरिया के।।”
हम अपनी माटी के बने अपने लोक कवि श्री युक्तिभद्र दीक्षित पुतान को याद करते हुये श्रद्धांजलि ज्ञापित करते हैँ ! उनकी क्रांतिकारी प्रगतिशील चेतना को नमन !!!
-शैलेन्द्र कुमार शुक्ल
एक परिचयात्मक लेख … और विस्तार में जाने की जरुरत थी
लेकिन गुमनाम मौत को गले लगाये कवि के लिए इससे अच्छी श्रद्धांजलि नहीं हो सकती कि एक युवा उन्हें सामने लाये..
शैलेंद्र शुक्ल ने ऐसा कर अपनी विरासत को सम्मान दिया है…
आपकै परयास बहुत कीमती बा । कुछू आल्हा पर लिखैं तौ बडी किरपा होऐ , हम सुल्तानपुर (उ.प्र.) से अही औ दिव्या समिति से जुडा बाटी जौन लोक स्वर महोत्सव कराऐ रही सन ८४ से २००४ई. तक मुला दुरभाग से बीचे मा ई क्रम टूट गवा , अब अक्टूबर मा फिर से करावै के जोजना बा जिहमा आल्हा , बिरहा ,चनैनी , पचरा , निरवाही , धोबी गीत आदि के कलाकरन कै परदरशन होए । यह बिसय मा आपकै सुझाव चाहत अही , बडा भाई और विद्वान होय के नाते ।