कुटियन मा उजियारा होइहैं!__जुमई खां ‘आजाद’

majoor आज मजूर-दिवस आय। यहि मौके पै अवधी कवि जुमई खां ‘आजाद’ कै ई रचना हाजिर है, जेहिमा सोसक लोगन के खिलाफ बगावती सुर बुलंद कीन गा है। : संपादक 
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कुटियन मा उजियारा होइहैं!__जुमई खां आजाद

“दुखिया मजूर की मेहनत पर,
कब तलक मलाई उड़ति रहे।
इनकी खोपड़ी पै महलन मा,
कब तक सहनाई बजति रहे॥
ई तड़क-भड़क, बैभव-बिलास,
एनहीं कै गाढ़ि कमाई आ।
ई महल जौन देखत बाट्‌या,
एनहीं कै नींव जमाई आ॥
ई कब तक तोहरी मोटर पर,
कुकुरे कै पिलवा सफर करी।
औ कब तक ई दुखिया मजूर,
आधी रोटी पर गुजर करी॥
जब कबौ बगावत कै ज्वाला,
इनके भीतर से भभकि उठी।
तूफान उठी तब झोपड़िन से,
महलन कै इंटिया खसकि उठी॥
‘आजाद’ कहैं तब बुझि न सकी,
चिनगारिउ अंगारा होइहैं।
तब जरिहैं महल-किला-कोठी,
कुटियन मा उजियारा होइहैं॥”
__जुमई खां ‘आजाद’

One thought on “कुटियन मा उजियारा होइहैं!__जुमई खां ‘आजाद’

  • April 17, 2015 at 9:35 pm
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    mn bhawa gajab ka likhe batya .. …….

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