कविता: हुवाँ अउर हियाँ
नीरज पाल कै ई कविता, कविता के जरिये यक बातचीत है। यहिमा गाँव से सहर मा आये के बाद गाँव केरी जिंदगी क ‘हुवाँ’ अउर सहर केरी जिंदगी क ‘हियाँ’ कहि के यक हल्का-फुल्का संबाद भर कीन गा है। हुवाँ काव काव हुअत रहा अउर हियाँ काव-काव हुवै लाग!
हमार कोसिस हुअत है कि केहू कै जौन ‘बानी’ भेजी जाय, हम भरसक वही हालत मा वहिका रखि दी। यहिसे भासा कै ‘ट्रेंड’ पता चलत है। यहिलिये कविता हमरे लगे जौनी हालत मा आयी, हम लगभग वही हालत मा हियाँ रखत अहन्। अपनी वारिस् कौनौ रंदा-रुखानी नाही चलायेन। : संपादक
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कविता: हियाँ अउर हुवाँ
हम गांवन के हरियर खलियान का दीख
और सहरन के जगमग समसान का दीख
गांवन मा लगा नीक नीक
सहरन मा लगा फीक फीक
हुवां कपरा पहिरैं अंग बचावें का
हियां फटहेव जचैं स्टाइल बनावें का
होयें कपडन मा जब तक दुई चार छेद नहीं
ऊ सहरन वाला भेष नहीं
गावन मा सम्मान अबहूँ है
छ्वाट बडेंन के संगै खात नहीं
हुवां हाय बाय ते बात नहीं
अम्मा बप्पा कहावत हैं
हियां मम्मी डैडी चिल्लावत हैं
जैसे घर मा न मुर्दा घर मा होंय
वो ऐसा सीन दिखावत हैं
हियां टीविन मा सीडी लगे पड़े
हुवां कोल्हू बैल चलावें का
हियां गर्मीं मा एसी लगावें का
हुवां पीपर के तारे वी स्वावत हैं
एसी का कहूं नाम नहीं ऐसी की तैसी मचावैं का
दादागिरी मा पाछे नहीं वी लम्बरदार कहावें का
हुवां मुअछन की रंगबाजी हवै
हियां रोवजये मूछ मुड़ावें का
भिक्खु नन्क्हू लाठी भांजै दीवारी मा चट्कावैं का
कित्ते पहलवानन का को सधी हुन लम्बरदार कहावें का
हुवाँ तित त्यौहार सब अपन लगें
हियाँ बज़ारन मा सब सजन लगें
हम गाँव का नीकैं कहब ई सहरन के गलियारन ते
हुवां दुःख सुख के भागीदार भलें हैं
हियां पिठछुरिया सब यारन ते!
__नीरज पाल
नीरज पाल कानपुर-अवध / उत्तर प्रदेश कै रहवैया हुवैं। यहि साइत अंधेरी-महाराष्ट्र मा यक बिग्यापन एजेंसी मा कॊपीराइटर के पद पै काम करत अहैं। ‘अगड़म-बगड़म’ – ब्लाग पै इनकै साहित्तिक हलचल देखी जाय सकत है। इनसे मोबाइल नं. 091 67 624091 पै संपर्क साधा जाय सकत है।