अमित आनंद कै कविता..!
अमित आनंद कै दुइ अवधी कविता हियां हाजिर है। कवितन क प्रस्तुत करत के हमार भरसक कोसिस रहत है कि कवि से जौने रूप मा कविता मिली हुवै, वही रूप क बरीयता दीन जाय। अवधी के गद्य अउर अधिकतर पद्य मा ‘ल’ मिलाय के क्रिया नाय चलत लेकिन कयिउ अवधी पारंपरिक गानन मा ई ल-रूप मिलत है, यहिलिये हियां अमित केर कविता मा जहां ल-रूप मा क्रिया है वहिकै उहै रूप बरकरार रखा गा है। (संपादक)
कविता (१) : पुरइन के पात यस, सरमात बीत जिंदगी!
पातर के मेढ़ पर
बिछ्लात बीत जिनगी
पुरइन के पात यस
सरमात बीत जिंदगी!
….
आँगन वसारे मा
घाम यस फैली
मेला बाजारी मा सून
घूमल थैली,
डमरू के ताल यस
डुग डुगात बीत जिनगी!
पुरइन के पात यस….!
अरगनी पे मन बीत
ताखे मा रहे सपने
गल्ली मोहल्ला के
कुल ठेह अपने,
पिरकी औ पाका यस
पिरात बीत जिनगी,
पुरइन के पात यस….!
वरौनी यस आँख बीत
देह जस घूरा
सांस के किस्सा भी
आधा अधूरा,
ठेहुना टिकाये
रिरियात बीत जिनगी,
पुरइन के पात यस….!
पातर के मेढ़ पे
बिछ्लात बीत जिनगी!
कविता (२) : टप टप पसीना चुआय गय जिनगी!
टप टप पसीना चुआय गय जिनगी!
….
बेना के पोंगी यस गोल भई अँखियाँ
बहती बयरिया संग दूर भई सखियाँ,
सरपत के चीरा यस पिराय गय जिनगी
टप टप पसीना ….!
दुआरे पै नीम सूख बडेरी पै छपरा
सूखा सीवानन मा जेठ बाय पसरा
लहकत लुहारी छुआय गय जिनगी
टप टप पसीना…!
खटलुस टिकोरा यस दांते गोठाईल
अन्हौरी के दानन यस पीठी खजुआइल
आन्ही औ बौखा यस डेरवाय गय जिनगी
टप टप पसीना ….!
*** ***
कवि-परिचय : अमित आनंद खड़ीबोली-हिन्दी मा ज्यादातर कविता करत हैं। ई अच्छी बात है कि अवधिउ मा कविता करत् थीं। इनकै जन्म बस्ती जिला (उ.प्र.) मा भा अउर ह्वईं रहिके रचना कै सफर जारी किहे हैं। इनकै संपर्क है – ई-वर्ल्ड / पीली कोठी / रोडवेज चौक, गांधी नगर, बस्ती / उत्तर प्रदेश – २७२००१
इनकै ई-मेल है eworld_amit@yahoo.com फेसबुक पर यहि पते पै मौजूद अहैं http://www.facebook.com/amit.a.pandey.14
भाई अमरेन्द्रजी, भोजपुरिहा भइला से आपके एह ब्लॉग प कबो-कबो टिप्पणी भा प्रतिक्रिया दिहीला. बलुक भाईजी, निकहा कुल्हि पोस्ट जरूरेजरूर पढ़ेनी. बिला नागा.
आज के कवि भाई अमित आनन्द जी के हृदय से सुभकामना. हम भाईजी के दूनो कविता (गीत) के पढ़ि के रुक ना पवलीं. आ आपन भाव साझा कर रहल बानी. भाईजी के दूनो कविता के भाव निहायत ज़मीनी बा. आ, बिसुद्ध शब्दन के प्रयोग हमार मन-हृदय के बरबस भावुक कर रहल बा. मन निकहा भरल बा, आँख निकहा नरम बा.
अरगनी पे मन बीत
ताखे मा रहे सपने
गल्ली मोहल्ला के
कुल ठेह अपने, .. का कहन आ का मनगर कहन !.. वाह !
चाहे.. .
ठेहुना टिकाये
रिरियात बीत जिनगी.. … ओह-ओह ! एह शब्द-रचना से का दृश्य बनल बा,भाईजी.. वाह !
भाईजी, अवधी आ भोजपुरी के भाषा में शब्दन में कवनो अंतर ना ह, बाकिर वाक्य के क्रिया में तनिका फरक भइला से भाषा में अंतर हो जाला. बाकिर भाव-दशा ? इहाँ कवन फ़रक, भाई?
एतना सुन्दर कविता साझा करे खातिर आपके दिल से बधाई आ सुभकामना.
–सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)
सौरभ जी, आपकै टीप हम सबके ताईं उत्साहवर्द्धक है। आप जइसे काव्यप्रेमिन कै बात कविता का पुरवाय दियत है।
रस भीनी भाव भीनी कविता जो बनाई है
अमित आनंद जी ! सौ सौ बधाई है I