कविता : निरहू समझाय सुता से कहिन..!
यहि कविता मा दहेज के बेहूदेपन का बड़े देसी अंदाज मा रखा गा है। लोग दहेज लै लियत हैं औ ससुरारि मा बिटिया क तकलीफौ दियत हैं। कविता मा कहा गा है कि हे बिटिया हम तीन लाख मा लरिका का मोल लिहे हन्, जाव अउर मनमौजी से रहौ, अगर कौनौ दिक्कत भै तौ हम आइ के बर पच्छ कै खटिया खड़ी कै दियब! ई गीत हमैं भाई महे्न्द्र मिश्र जी बतायिन हैं, जिनका ई गीत ‘गाँव – नरही कै पुरवा / तहसील – रुदौली /जिला – फैजाबाद’ मा गावत यक यादव जी के जरिये मिला। : संपादक
कविता हाजिर है:
कविता : निरहू समझाय सुता से कहिन..!
“ निरहू समझाय सुता से कहिन,
ससुरारि क जाति अहिउ बिटिया,
हम हाल सुनब तब होब खुसी,
तुम जातइ-जात दिहिउ चिठिया,
भुइयाँ कबहूँ नहिं पाँउ धरिउ,
खटिया पै चढ़ी रहिउ बिटिया,
घर साफ-सफाई कुछौ न किहिउ,
घरहिन मा घूर लगायिउ बिटिया,
चौका मा पानी जौ न मिले,
अँगना मा पटकि दिहिउ लोटिया,
जब सास ससुर तुहैं कुछ कहिहैं,
उनहूँ क जहर दै आयिउ बिटिया,
आस-पड़ोसी जौ कुछ बोलिहैं,
गाँव फूँकि चलि आयिउ बिटिया,
हम लाख तीन मा मोल लिहेन,
फिर खड़ी करब उनकै खटिया। ”
यहि गीत कै बतवैया: भाई महेन्द्र जी यहि गीत कै जानकारी दिहिन हैं। महेंद्र जी ग्राम व पोस्ट – जरौली, तहसील – राम सनेही घाट , जिला-बाराबंकी कै रहवैया हुवैं। भाई साहब साहित्य मा दिलचस्पी रक्खत हैं औ सुंदर साहित्यिक पँक्तियन से परिचित करावा करत हैं, फेसबुक पै। इनसे आप mahendra_121@sify.com पै संपर्क कै सकत हैं।
bhai tripathi ji apne ke au mahendar ji ke prayas bada achha lagal.
यहु कबिताई अंदाज़ बहुतै निराला अहै .बिलकुल ठेठ अउ देसी लहजा !