कबिता : तट कै कौन भरोसा (हरिश्चंद्र पांडेय ‘सरल’)
कबि हरिश्चंद्र पांडेय ‘सरल’ कै जनम सन १९३२ मा फैजाबाद-अवध के पहितीपुर-कवलापुर गाँव मा भा रहा। इन कर बप्पा महादेव प्रसाद पाड़े रहे, जे बैदिकी क्यार काम करत रहे। सरल जी कै दुइ काब्य-सँगरह आय चुका हैं, ‘पुरवैया’ अउर ‘काँट झरबैरी के’। इनकी कबिता मा करुना औ’ निरबेद कै कयिउ रंग मौजूद अहैं, दीनन के ताईं दरद अहै, सुंदरता कै बखान अहै मुला बहुतै सधा-सधा, जाति-धरम के झकसा के मनाही कै बाति अहै अउर सुभाव कै सलरता कै दरसन बित्ता-बित्ता पै अहै। साइद ई सरलतै वजह बनी होये नाव के साथे ‘सरल’ जुड़ै कै।
सरल जी कै कबिता ‘तट कै कौन भरोसा’ आपके सामने हाजिर है, जेहिमा जिंदगी कै बिबसता मार्मिकता के साथ उकेरी गै है::
कबिता : तट कै कौन भरोसा
तट कै कौन भरोसा जब हर लहर छुये ढहि जाय,
खोलइ कौन झरोखा जब सगरौ अँधियार लखाय।
पग दुइ पग तौ रेत लगै औ दूरि लगै जस पानी,
बुद्धि मृगा कै हरि कै लइगै तिस्ना भई सयानी,
दृग कै कौन भरोसा जब रेती कन नीर लखाय।
… … खोलइ कौन झरोखा जब सगरौ अँधियार लखाय।
आग लगै घर के दियना से धुवइँ धुआँ चहुँ ओर,
गिन गिन काटौ रैन अँधेरिया तबहुँ न जागै भोर,
पथ कै कौन भरोसा जब हर पग पै पग बिछलाय।
… … खोलइ कौन झरोखा जब सगरौ अँधियार लखाय।
अँधियरिया हम बियहि के लाये पाहुन लागि अँजोरिया,
तुहुँका बिपति बिपति यस होये हमैं पियारि बिपतिया,
सुख कै कवन भरोसा जब कुसमय देखे कतराय।
… … खोलइ कौन झरोखा जब सगरौ अँधियार लखाय।
[~हरिश्चंद्र पांडेय ‘सरल’]
मज़ा आई गवा ई रचना पढ़वाय के ! अइसन खज़ाना अबे तक कहाँ छुपाय रहे हौ ?
ई जग मृगतृष्णा से अधिक कछु नाहिं
” तुहुँका बिपति बिपति यस होये हमैं पियारि बिपतिया”
जउन ई बतकही का मरम जानि गा ओहिका कौनो फरक नाही पडत
यहि भवसागर मा
….सरल जी सचमुच सरलमना हवै….
आभार….