दुखद ई है कि हम खुद अपनी प्यारी भासा का बोलै से हिचकिचात हन ~ ‘पद्म श्री’ बेकल उत्साही

ई खुसी कै बाति है कि सदा सदा से बेराय दीन गयीं लोकभासन मा यहिरी कुछ सालन से अपने निजीपने का लैके चेतना लौटी है। ‘हिन्दी की बोलियाँ’ कहिके इन आजाद भासन के साथ पिछले कयिउ दसकन से बड़ी हानि कीन गै। संजोग से इस्थिती बदली। बजार ओपन भा, पूँजीवाद आवा, तकनीकी रास्ता बनइस अउर नवा उछाह आवा यहिसे। यनही सबकै नतीजा ई भा कि हाल के कुछ सालन मा लोकभासन के जियै कै नई सुगिस्ता बनत देखाति अहै। इन लोकभासन मा अब सम्मान वगैरा दियै कै उत्साह देखावा जात अहै, जेहिकै अच्छी बात यू है कि यही बहाने कुछ लोकभासौ मा जबान हीलै-डोलै लाग। पिछले महीने की पाँच (अगस्त) तारीख क संत गाडगे सभागार लखनऊ मा अवधी बिकास संस्थान की वारी से बिख्यात कबि बेकल उत्साही जी का पहिला तुलसी अवध स्री सम्मान दीन गा। सम्मान के रूप मा २१ हजार रुपया, तारीफ पत्र अउर यादगारी चिन्ह दीन गवा। बेकल जी कै सम्मानित हुअब हम सबके लिए गौरव कै बाति है। बेकल जी से मुलाकात पै यक पोस्ट हम बनाय चुका हन, जहाँ से कुछ और बातैं जानी जाय सकत हैं।
सम्मान मिलै के अवसर पै बेकल जी कै कहब रहा : “अवधी भासा के बिकास के लिए सरकारी परयास कै बहुत जरूरत है। जैसे सरकार की तरफ से हिन्दी अउर उरदू के बिकास के ताईं तमाम संस्थै बनायी गयी हैं, वही चाल पै अवधिउ का पहिचान मिलै कै जरूरत है। दुखद ई है कि हम खुद अपनी भासा का बोलै से हिचकिचात हन। हमैं लोगन का यहिके लिए जगावै क चाही। राजनीति अवधी का चौपट किहिस है। हमैं सचेत रहै क चाही। नयी पीढ़ी अवधी क आगे लैके आए, फिलहाल हम इहै सोच के खुस अहन।” बेकल जी केरी बातन मा दर्द जाहिर अहै अवधी की दुर्दसा पै। जौनी राजनीति की चर्चा बेकल जी किहिन हैं वही राजनीति की वारी इसारा मधुप जी यक इंटर्ब्यू मा पहिलेन कै चुका हैं। ई राजनीति सरकार के थोर-मोर परयासन क अउरौ बेअसर करति अहै, मठाधीसी अउर अगुवा लोगन कै निजी सुवारथ बड़ी बाधा है। इनकै दिल भासा के बढ़ावै से ज्यादा खुद क बढ़ावै मा लाग है, यही ताईं यै लोगै अवधी भासिन के ब्यापक संख्या का लैके अबले कुछौ नाहीं कै सका हैं। सै भाठै से कुछ भला नाय हुअत। बेहतर होए कि लोकभासा के नाव पै बंबई दिल्ली कै हवा मौजत यै लोगै ई देखि सकैं कि काहे मा भासा कै भला है। इन इस्थितिन मा बेकल जी की बातैं अउरौ मानीखेज ह्वइ गै हैं।
बेकल जी मानत हैं कि जौनी सायरी मा माटी कै महक न होये ऊ खतम होइ जाए। बेकल जी खुदौ अपनी सायरी के दुनिया मा गाँव-सेवान के माटी कै महकि बित के डाय दिहे अहैं। वै हिन्दी/उरदू मा जौन सायरी लिखे हैं वहू मा यहि चीज कै ध्यान रखे हैं। आज बेकल जी कै यक रचना हियाँ दियत अहन, जेहिमा गाँव-गिराँव कै सुधि पिरोयी अहै:
गीत : बलम बम्बइया न जायो..
खारा पानी बिसैली बयरिया
बलम बम्बइया न जायो..
रोज हुआँ सुना चक्कू चलत हैं
बड़ि मनइन कै दादा पलत हैं
टोना मारति है फिल्मी गुजरिया,
बलम बम्बइया न जायो..
लागि रहत फुटपथिया मेला
गलियन मा बिन भाव झमेला
मारै बिल्डिंग गगन का नजरिया,
बलम बम्बइया न जायो..
दूनौ जने हियाँ करिबै मजूरी
घरबारी से रहियये न दूरी
हियैं पक्की बनइबै बखरिया,
बलम बम्बइया न जायो..
निरधन है पर मन के धनी है
हमरे गाँव मा कौन कमी है
स्वर्ग लागत है हमरी नगरिया,
बलम बम्बइया न जायो..
[ ~ “पद्म श्री” बेकल उत्साही ]
आभार : कार्यक्रम कै सूचना भेजै मा चंदर भैया कै महती भूमिका रही, हम चंदर भैया कै आभारी हन!
बेकल जी के दर्द से मेरा भी साझा है -हिन्दी की दुर्गत में हम खुद लगे हुए हैं !
“मन तुलसी का दास हो अवधपुरी हो धाम।
सांस उसके सीता बसे, रोम-रोम में राम।।
मैं खुसरों का वंश हूँ, हूँ अवधी का सन्त।
हिन्दी मिरी बहार है, उर्दू मिरी बसन्त।।”-बेकल उत्साही
अइसी सोच रक्खे वाले बेकल जी का शत-शत परनाम
बेकल जी पर आपकी पोस्ट भावनात्मक रुप से केवल भाषा ही नहीँ, हमेँ अपनी मिट्टी और संस्कारोँ की याद दिलाने के साथ उससे जुड़े रहने का आवाहन देती है। विश्वास है बेकल जी और आप जैसे लोगोँ का प्रयास अवधी की प्रतिष्टा को पुनः स्थापित करेगा। आभार ..
Ham apko ek bat kah rahe hain ki ap bagheli bhasa ke sayari bhi inha lod karen my mob 8349143822
सीतापुर का दुर्भाग्य है कि स्व. राम कृष्ण संतोष जी का नाम अवधी साहित्य में नही लिया जाता जबकि उनका बहुत सराहनीय योगदान रहा है अवधी साहित्य में। अवध ज्योति, बिरवा, जैसी पत्रिकाओ में उनकी रचनाएँ देखी जा सकती है।