लोकभासा के नाव पै सरकारी संस्था कै झूठ दुखद है..!
यहिरी यक आधुनिक किसिम कै चलन चला अहै, कि लोकभासा/लोक-संसकिरिति/लोक के बारे मा कुछौ अगंभीर होइके बोलि दीन जात है और इन सभ्य लोगन के दुवारा अँखमुदिया सेलिबरेसन मनावा जात है। ई चलन लोकभासा/लोक-संसकिरिति/लोक का रखै/उठावै के नाव पै चला अहै, मुल ई मगजमारी कुल मिलाइ के लोकभासा/लोक-संसकिरिति/लोक कै बंटाधारै करत है। यहिसे लोक से जे जे जुड़ा अहैं उनका ई बात बड़ी गंभीरता से समझै का चाही कि लोकभासा/लोक-संसकिरिति/लोक के नाव पै जौन कुछ कहुँवौ कीन जात हुवै वहिकै ठहर के परख करैं, काहे से कि लोकभासा/लोक-संसकिरिति/लोक अमीरन क्यार हँसी-हँसारव भर न आय। यहिकी आत्मा का अगर जे न उतार सकै या जेस चाही तेस उतारै कै परयासौ न करै तौ वहिका हरगिज यहिसे खेलुवार करै कै कौनौ हक नाय है। अइसनै कुछ बड़ा काहिल परयास देखान उर्मिल कुमार थपड़ियाल के रंग-निर्देसन मा, अउर वहिपै संगीत नाटक अकादमी कै धोखाधड़ी जौन ‘अवधी प्ले’ कहिके चलाय दीन गै।
२९ जुलाई २०११ का संगीत नाटक अकादमी, कमानी आडीटोरियम मा ‘बहादुर कलारिन’ नाव केर यक खेला कराइस। सूचना दिहिस – ‘ए प्ले इन अवधी’। हम कुछ लोग यही सोच के गयन कि ई नाटक अवधी भासा मा खेला जये। हुवाँ गयन तौ खेला कुछ अउरै होइगा। पूरा नाटक देखे के बाद बड़ी तितकोप भै कि पूरे नाटक मा बड़ी मुश्किल से पाँच परसेन्ट अवधी बोली गै होये, नाहीं तौ कुल हिन्दिन बोली गै। यही से यहू जाहिर भवा कि केवल लोकभासा क्यार कोरम पूरा कीन गा अकादमी की तरफ से। अस काहिली दुखद है अउर सही माइने मा ई धोखाधड़ी कही जाये, जहाँ सबका लोकभासा कै खुसबू सुँघावै के बहाने बलावा जात है, औ’ हुवाँ अउरै नखड़ा देखावा जात है। यकाध पात्रन से हिन्दी बोलुवायी जात तौ ई माना जात कि चलौ जथारथ लावै के ताईं अस कीन गा होये, मुदा नाटक मा वतरौ अवधी नाहीं बोलुवाई गै जेतरी अवधी हिन्दी सिनेमा मा बंबैया लोगै बोलुवाय दियत हैं। गाना मा अवधी पुट रखि के चलावै कै परयास कीन गा जौन नाटक के साथ मिलिउ नाय पाइस। न तौ पात्रन कै कपड़ै-लत्ता वहि कसौटी पै खरा रहा, यहू मा नगर कै आभा जबरिया समोयी गै रही। सबसे दुखद ई है कि अब आगे यै संस्थै लोकभासा अवधी/भोजपुरी/छत्तीसगढ़ी आद-आद कहि के बलावा चहिहैं तौ देखैया कौने भरोसे जाये!
बाकी कुल मिलाइके नाटक असफलै रहा हर मेर से, जेहिपै हम ढेर न कहब, यहिके खातिर आप लोग कुणाल भाई के लेख – “हबीबी-लकीर लाँघने की असफल कोशिश : बहादुर कलारिन” – का देखि सकत हैं, जिनकी बातन से हमार सहमति है कि यक बोल्ड बिसय (‘ईडिपस कॉम्प्लेक्स’ और आत्मरति ग्रंथि यानि ‘न्यूरोसिस कॉम्प्लेक्स’) के साथ नियाव नाय कीन गा।
भयवा!ई तो बहुते उलट मामला निकरा! हम का का सोचे बैठा रहेन! मुला ५% सही, कुछ तो अवधी माँ रहा , यही मा तसल्ल्ली के लीं जाये ! ई रिपोर्ट के ताई आभार !
हाँ भइया, हमहुँक इहै धक्का लाग!
sarkari tamasha yahi tanaa hvaat havai bhai! hamka to dukhu yahi baat ka hai ki aapka taim kharaab bha ! babu log to aapan kharcha-pani nikaarai ki khaatir yah sab karathe hain !
इहै खराब बात है कि यै लोगै अपनी खाना-पूर्ती के चक्कर मा बाकी सब बेढ़ै दियत हैं!
हर जगह मिलावट है भैया ….
उनकी क्या गलती !
🙁
bhai ji,
apne thik kahli haa,kaafi samay se e sarkari dhokha lagatar academy (SNA),aa nsd mein ho rahal hai.hamni sabhe je sharati ho gail hai,u lok bhasha aa maati se aapan judaav bade naatak bha programme la chal jaat hain baaki uhaa dhikha ke alawa aaur kuchu na milat hai…
भैया, लोक के नाव पै ई ठगी बहुतै नकसान करे, यहिसे हम सबका चौकस रहै क चाही! सुक्रिया!
hum yaha kaha chaiyt hai ki apan lok bhas kai jaun mithas hai u bahut rassel hain ou bahutai sunderwo hai