छोटे मुँह बड़ी बात [२] : जिम्मेदारी !
ई सन १९३३ कै बाति आय। गाँधी जी देस भर कै दौरा करत रहे। जहाँ जहाँ जात रहे, ह्वईं हरिजन कोस के बरे धन यकट्ठा करत रहे। महादेव जी गाँधी कै निजी सचिउ रहे। यई पाई पाई कै हिसाब रक्खत रहे।
यक दिन राति मा जब महादेव जी हिसाब करै बैठे तौ दंग रहि गये। उनका लगभग हजार रुपया कै कमी जानि परी। सचेत होइके फिर जोड़िन-जाड़िन मुला रुपया कै कमी फिरिउ निकरी। दरअसल रुपया कै थैली केहू मारि लिहे रहा। जे रुपया चोराय लिहे रहा, वहकै पता लगाउब टेढ़ी खीरि रही। महादेव जी दुखी होइ गये, अउर कयिन काव सकत रहे!
होते करते बाति गाँधिउ जी तक पहुँची। गाँधी जी पूरे वाकये से अवगत भये। लोगै उनसे पूछिन: “बापू! इन हेरान रुपयवन के ताईं काव कीन जाय, काव सोचत हैं आप?”
गाँधी जी कुछ देर चुपान रहे फिर बेखटके कहिन: “काव कीन जाय वाली कौन बाति! ई रुपया महादेव जी अपनी जेबिस् भरैं!”
केहू कहिस: “बापू! महादेव जी तौ रुपया लिहिन नाय!”
गाँधी जी कहिन: “यहिसे का भा! आखिर जिम्मेदारी तौ महादेवै जी कै रही। ई सार्वजनिक पैसा आय, सबकै धन!”
थोड़ी देर तक माहौल सनामन्न रहा। केहू कुछू नाय कहिस। आखिर वहि रकम का महादेव जी अपनी निजी कमाही से भरिन।
गाँधीजी जौन दुसरे ते चाहति रहैं ,वह खुद पहिले करत रहैं! आजु कि तना नहीं कि मंहगाई घटावै के बरे खाली जनता कै जेब मारी जाति है,सरकारी-सेवकन कै नहीं !
अब ऐसे लोग कहां?
छाँटु बीन कै ई भल उदाहरण दिहौ, भाय !
मुला बड़ा मोस्किल फँसा दिहौ.. अब हमका ई समझाव के गाँन्ही बाबा केर नाम पर सरकार चलावै वाले राजकोश केर घाटा कहाँ तै भरैं ? उल्टे ऊई घाटा मा घाटा देखाय के रुपिया तेनु आपन घरे भरें ल्यात हैं !
अब तौ नाम कै इस्तेमाल करै वाले गांधी रहि गए हैं, दूध पियै वाले मजनू न कि खून दियै वाले मजनू, अब वाले स्विस गांधी हैं 🙁
जिनकी जिम्मेदारी है , वह भरे …
देश की दुर्दशा की जिम्मेदारी जिनकी है , नुक्सान वे ही उठाते …काश!
अब चुराया पैसा कौन भरे!
apne bhasa ke ek site dekhi ke maza aai gawa