लरिकउनू ए.मे. पास किहिनि
लरिकउनू ए.मे. पास किहिनि
सबि पट्टी बिकी असट्टयि मा,
लरिकउनू ए.मे. पास किहिनि।
पुरिखन का पानी खूबयि मिला,
लरिकउनू ए.मे. पास किहिनि॥
अल्ला-बल्ला सब बेचि-खोंचि,
दुइ सउ का मनिया-अडरु किहिन।
उहु उड़िगा चाहयि पानी मा,
लरिकउनू ए.मे. पास किहिनि॥
हम मरति-खपति द्याखयि दउरयन,
उइ मित्र मंडली मा नाचयिं।
दीदी-दरसनऊ न कयि पायन,
लरिकउनू ए.मे. पास किहिनि॥
महतारी बिलखयि द्याखयि का,
बिल्लायि म्यहरिया ब्वालयि का,
उयि परे कलपु-घर पाले मा,
लरिकउनू ए.मे. पास किहिनि॥
कालरु, नकटाई, सूटु-हैटु,
बंगला पर पहुंचे सजे-बजे।
न उकरी न पायिनि पांचउ की,
लरिकउनू ए.मे. पास किहिनि॥
अरजी लिक्खिनि अंगरेजी मा,
घातयिं पूंछयि चपरासिन ते।
धिरकालु”पढ़ीस” पढ़ीसी का,
लरिकउनू ए.मे. पास किहिनि॥
घातयिं=तरकीबें,जुगत
-बलभद्र प्रसाद दीक्षित” पढ़ीस”
कविता संग्रह ‘चकल्लस’ -प्रकाशित 1933
नोट : यहि पोस्ट क अनूप सुकुल जी पोस्ट किहे रहे, मुला ब्लागर से वर्डप्रेस पै लावै म तकनीकी वजह से पोस्टेड बाई म उनकै नाव नाहीं आय सका, ब्लागर वाले ब्लाग पै अहै, यहिबरे ई नोट लिखत अहन! सादर; अमरेन्द्र ..
बलभद्र प्रसाद दीक्षित” पढ़ीस” जी की कविता पढवाने के लिए आभार
वाह वाह ,पढ़ीस जी का कोई जवाब नहीं !
आजकल की शिक्षा और विद्यार्थियों पर
सुन्दर और रोचक काव्य रचना !
यहाँ लाने के लिए आपका धन्यवाद !
अरजी लिक्खिनि अंगरेजी मा,
घातयिं पूंछयि चपरासिन ते।
धिरकालु”पढ़ीस” पढ़ीसी का,
लरिकउनू ए.मे. पास किहिनि॥
एकदम्मै बमगोला है
जो “पढीस” के बोला है
अवधी में दुई जनमु होत है
बाद में तुलसी पहिले रामबोला है.
are waah ..koi brajbhasha se judaa blog bhi ho to bataye
sham ko bundelee maa kament karihoun
khati awadhi ke kavita padhike maja aai gawa ….dhanyawaad !!!
बाह रे फुरसतिया बाबू ! हम पहिली बार पढ़ेन 'पढ़ीस' का आपकी किरिपा ते 🙂
देखिके लाग कि डिगरी पावै कै मतलब पढ़ाई पावै से कमै रहा , ई बाति बहुत पहिले ते चली आय रही . कुलि मामला हसाई-त्रासदी पै ठहरत है ! मनोज तेवारी कै गावा गाना याद आवत है : ' एम् ए. मा लेके एड्मीसन कम्पटीसन देता…' ! द्याखौ बी ए की डिगरी पै रमई काकौ कहिन हैं :
'' लरिकउनु बी ए पास किहिनि, पुतहु का बैरू ककहरा ते।
वह करिया अच्छरू भैंसि कहं, यह छीछाल्यादरि द्याखौ तो। ।
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नीक लाग सुकुल जी आपकै हियाँ पोस्ट-कारी देखि के ! मंसान रहौ फ़ुरसतिया साहिब !! 🙂
अवधी के प्रसार में वर्चुअल स्पेस में आप का कार्य अतुलनीय हैं
.
ई तौ बड़ा ध्वाखा हय, भईया ।
वाह हियाँ अवधी केर मौज चलि रहा है, अउर हम जनबौ नहिं भयेन ?
पहिले अब तईं का छापा सकल लेखु बाँचि लेई तबहिन टिप्पणी देब..
मुला अनूप ए.मे., ए.मे. गोहरावत रहिगे, या तौ बताइन नहिं कि लरिकउनू काहे. मे. पास किहिन ?
Interesting but at the level of junior high school poetry. It has been the prerogative of people to make fun of all modern education.
Padhai pharasi benchai tel.
or
Kabul gaye mughal hwai aaye,
bolain mugali baani.
aab aab karatai u marigai
khatia tar rahaa paani
etc were known perhaps in 16th-17th century.
Let us not be cynical. This poem is fine but just so..
सुकुल जी
इतै उतै सबई जिंघां से तुमाई चिठिया
पसंद करी सौ हम काय खौं पांछूं हौंय
अवधी कै अरघान खों
हम बुंदेली के सिपाहीअन को परनाम
@ Anonymous
भैया , जूनियरौ केरि कबिता पढे-सिरजे मा मौज आवत है , कुछ सबद मिलत हैं , भाव मिलत हैं , इस्मिरिति जागत है ! यहिते लाभकारी लागत है यहू सब ! आप आये , आपके आवै से हमरौ ज्ञान बढ़ा , दुसरकी कहावत तौ हमें आपै से जानकारी मा आई , यहिते तोहार आभारी अहन ! आगेउ आवै कै मेहरबानी बनाए रहेउ ! सादर..!