कौवा-बगुला संबाद , भाग- ४ : पैसा कै महिमा
[ भैया ! / आज तौ दिन है कौवा-बगुला संबाद कै .. आज कै बिसय है – ”पैसा कै महिमा” .. यक कविता लिखे रहेन,यही परसंग के अनुकूल जानि के वहू का इन दुइ पच्छिन के माध्यम से कहुवाय दियत अहन .. ]
[ पिछले अंक म — कटा हुवा हरा पेड़ लादे यक टेक्टर यक नये थाना के सीमा म दाखिल हुवत है.. दुइ पुलिस
वाले वाहिका रोकावत हैं.. कौवा-बगुला पास के पेड़ पै बैठि के पूरा माहौल देखत हैं ..]
———- अब आगे कै हाल , आपके सामने है ————
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कौवा-बगुला संबाद , भाग- ४ : पैसा कै महिमा
( दुइनिव पच्छी पेड़ पै बैठि के बतलात अहैं..)
कौवा : अरे यार ! पुलिसवै टेक्टरवा काहे रोकावत अहैं ..
बगुला : अरे..हमार पेट केतनौ भरा रहै लेकिन हम मछरी देखि के छोडित नाय ..बस अइसने समझौ कि चारा सामने आइगा .. आजाद भारत कै आजाद पुलिस वाहिका कैसे छोडिहें ..
कौवा : तुहैं तौ पूरी दुनिया अपनेन लेखा लागत है ..
बगुला : तौ देखि लियौ आगे ..
( दुइनौ देखत हैं कि दुइ पुलिस, ड्राइबर अउर वकरे सथुवा के पास जात हैं , अउर ……..)
मेन पुलिस : ”रोक साले ! …साले बहन … रोड तुम्हारे बाप की है जो खेत जैसा जोतते चले आ रहे हो ..साले भोस…हरा पेड़ काट कर ले जा रहे हो .. साले को बंद कर दो थाने में .. पीसेगा
चक्की ..साला मादर …”
दुसरका पुलिस : साहब जाव , आपकै चाय बनी तैयार अहै .. इन हरामजादन का हम देखि लियब ..
( मेन पुलिस दुकान पै निः सुल्क ब्यवस्था वाली चाय कै मजा लियय लाग ..)
ड्राइबर : का साहब .. जौन थाना पार करी ह्वईं पैसा दियय का परे .. ई कहाँ कै रीति आय .. ५००
रुपया हर पेड़ के हिसाब से पहुँचाय दिहेन अपने थाने पै , वहिके बादौ ई सब .. का तुक बनत है ..
दुसरका पुलिस : बहस-बाजी न करौ .. नहीं तौ बहसै करै के ताइं कोरट तक दौराय दियब .. होस
पैतड़े ह्वै जाये ..
ड्राइबर कै सथुवा : ( दांत चियार के ) अरे साहब ……….
” जेहि बिधि होय नाथ हित मोरा |
करहु सो बेगि दास मैं तोरा || ”
दुसरका पुलिस : सौ कै गाँधी-छाप निकारि के धै दियौ , फिर जाव जहाँ जाय का हुवै ..
( ५० रुपया पै सौदा तय भवा . रुपया लै के पुलिस चलता बना ..यहिरी ड्राइबर अपने सथुवा से ..)
ड्राइबर : साले .. बहिन .. लियत हैं घूस अउर कहत हैं ..गाँधी-छाप..
( यहितरह , टेक्टर आगे निकरि गा अउर कौवा , बगुला चालू भये ..)
कौवा : पुलिसवै टेक्टरवा का छोड़ि दिहिन …
बगुला : ई सब पैसा कै महिमा है …
कौवा : पैसा कै महिमा … का मतलब …
बगुला : ई कै महिमा बतावै के ताइं यक कविता सुनावत अही .. सुनौ …
” पैसा कै महिमा अपार , रे भैया , पैसा कै महिमा अपार …
पैसा कै धाक जमी चौतरफा ,
पैसा है सबकै भतार .. | ..रे भैया , पैसा कै … …
पैसा कै रेल गाडी , पैसा कै खेल गाडी ,
पैसा उड़ावै जहाज ..
पैसा से राह घटै, पैसा से जेब कटै,
पैसा जहर औ’ इलाज ..
पैसा से मंत्री , पैसा से संत्री ,
पैसा चलावै सरकार .. || १ || ..रे भैया , पैसा कै … …
पैसा किलट्टर , पैसा रजिस्टर ,
पैसा से ओहदा-रुआब ..
पैसा के पावर से जुल्म करैं भैया ,
बने सरकारी-नबाब ..
पैसा वकील बनै,पैसा सिपाही बनै ,
पैसा बनै थानेदार .. || २ || ..रे भैया , पैसा कै … …
पैसा से माया, पैसा से काया ,
पैसा से जुरै अनाज ..
पैसा से नात-बात,पैसा से जात-पात,
पैसा बिन सूना समाज..
पैसा से सूट जुरै,पैसा से बूट जुरै,
पैसा से सगरौ सिंगार .. || ३ || ..रे भैया , पैसा कै … …
पैसा से प्यार हुवे,नाहीं इंकार हुवे,
पैसा सकल-गुन-खान ..
पैसा सुरूप करै,नाहीं कुरूप करै ,
पैसा तौ बड़ा सैतान ..
पैसा से गर्मी, पैसा बिना नरमी ,
पैसा कै सब खेलुवार .. || ४ || ..रे भैया , पैसा कै … …”
कौवा : काहे रुकि गयौ .. हमैं याद आवै लाग..यकरे आगेउ कुछ अहै ..ऊ यहि मेर से है ..
” पैसा से कर्ज टरै,पैसा से मर्ज टरै,
मुला न टारै ई मौत ..
पैसा के चिंता कै, बेचैनी कै पल ,
काटत हैं जैसे सौत ..
पैसा बहुत कुछ,मुला नाहीं सब कुछ,
सम्हला हो सोच,बिचार .. || ५ || ..रे भैया , पैसा कै … …”
बगुला : यहिका यहि लिये नाहीं बताये रहेन कि ये लाइनें हमरे काम कै नाय अहैं ..
कौवा : मुला हमरे काम कै हैं ..
बगुला : अंधेर हुवत अहै .. अब चलै .का चाही ..
कौवा : कालीदीन के ताले पै औबइ अगली मुलाकात के ताइं ..
बगुला : ठीक अहै ..
कौवा : राम राम !!!
( दुइनिव अगली मुलाकात कै वादा कैके आपन-आपन राह पकरत हैं )
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[ आज एतनै ,,,
अगिले अत्तवार का रमई काका पै कुछ सामग्री रखबै …
तब तक के लिये …भैया ! हमरौ राम राम !!! ]
छबि-स्रोत:गूगल बाबा
कम स कम इन चिरयैन क बरबरे इंहां बदमाशन क बुद्धि होये जात ..
बढियां चलत ब ई उज्जर- करिया (चिरई ) संवाद !
majaa aay gawaa… !
बतावा। एन्हने पच्छी भी जा थीं थाने के लग्गे सतसंग बदे! केतना बढ़िया बढ़िया सलोक सुनै के मिलथ ओहर! केतनी पारिवारिक सम्बन्धन क भाषा होथ उहां!
वाह ! क्या संवाद है और क्या संदेश.
जब भी आपको पढता हूँ तो बरबस ही उर्मिल थापिल्यल की याद आती है वही शैली वही तरीका वही देशी बात ……..जो सीधे दिल, दिमाग पर उतर जाती है.
बहुत खूब
bahut khub likha aapne
abhar…….
’ई उज्जर- करिया (चिरई ) संवाद’ त भईया मन लगाय के पढ़िला ।
तरीका हमैं बहुतई पसन्द हौ !
ramai kaka ke hamhoo bade 'fan' han. achchha lagaa unko is internetva duniya me dekh ke !
ये कविता मेरे कमरे मे आने वाले जाने कितनों को पढ़-पढ़ के सुना चुका हूँ..: पैसा के महिमा..'यह छीछालादर द्याखौ तौ' से क्या कहीं कम ठहरती है यह कविता..और कौवा-बगुला बड़ा सयान हवन..हर- बरिये कुछ नया धमाका कई देत हवन..और फिर जब सूत्रधार इतना लायक रहिहै तौ कहे नाई इ लोगान एतना सयान रहिह..अमरेन्द्र भैया तोहरहि के नाते कौवा माने हम सकारात्मक समझ लागली..नाई त बगुला-कौवा मे कौनों फरक नहीं रहल हमारे खातिर…!
जबर्दस्त प्रस्तुति..उधर हिमांशु जी कहर ढाये है सिद्धार्थ के साथ इधर आप कौवा-बगुला के साथ….अनगिन बढ़ाइयाँ..!!!
bahut khub likha aapne
abhar…….