अवधी गजल : बगिया मा रहा जाई ..! (जाहिल सुलतानपुरी)
जाहिल सुलतानपुरी के बारे मा हमैं ढेर पता नाय है। ‘सुलतानपुरी’ लाग अहै, यहिसे ई तौ किलियरै हुअत है कि यै सुनतानपुर कै रहवैया होइहैं! फिलहाल यहि गजल से मुखातिब हुवा जाय:
फुर बात जवन होइहै बस वहै कहा जाई,
अब घर दुआर छूटे बगिया मा रहा जाई।
ठेंगे से जौ गर्मी है रस्ता मा कयामत के,
जुल्फी के तरे ओनकी समथाय लिहा जाई।
एक रोज गयन हमहूँ सरकार की महफिल मा,
जौ रंग हुवाँ देखा हमसे न कहा जाई।
आवै दे जौ आवत है मयखाने मा ओ साकी,
एक जाम मा जाहिद का समझाय दिहा जाई।
सोना के वजन गल्ला, चाँदी के वजन सब्जी,
सुरमा के वजन सिरमिट हमसे न लिहा जाई।
कब ताईं जुलुम सहबै इन अत्याचरीवन कै,
अन्याय कै हद होइगै अब चुप न रहा जाई।
नेगे मा नउनिया का नेता के बियाहे मा,
खद्दर कै बस एक जोड़ा बनवाय दिहा जाई।
उठते ही नजर उनकै दिल खाय कलाबाजी,
अब उनके दिवानन मा नाम हमरौ लिखा जाई।
हम तिस्ना बलब कब ले हउली मा पड़ा रहबै,
नाहीं न जो पैमाना चुल्लू से पिया जाई।
अबकी जौ कबौ देखिस ऊ घुइर के बुलबुल का,
सइयाद का पेड़े मा लटकाय दिहा जाई।
तुम सेर औ’ गजल आपन रक्खे रहौ थैली मा,
जल्दी बा हमैं जाहिल फुर्सत मा सुना जाई।
(~जाहिल सुलतानपुरी)
हम तिस्ना बलब कब ले हउली मा पड़ा रहबै,
नाहीं न जो पैमाना चुल्लू से पिया जाई।
मस्त पोस्ट अमरेन्द्र जी ……..
बहुत दिन बादि आकै एकदम्मै से धमाका केहो है,भाई !
हमका इतनिउ जल्दी नय है…आराम ते सुना जाई!
बहुत बढ़िया जाहिल भाई ! आभार !
बहुत नीक लागि, जाहिल दादा कै अवधी ग़ज़ल
Hawa Bharo Becho gubbara – yehu gajal shayad jahil ji ki hai…? m i correct ?
hamse na yehi kai tarreef kiha jaai, ba ka batai bhai jetana badhia ghazal padhai,